नेफ्रोटिक सिंड्रोम हिंदी / पेशाब में प्रोटीन जाने का होम्योपैथिक इलाज / पेशाब में प्रोटीन जाने का आयुर्वेदिक इलाज / आंखों की सूजन का इलाज / नेफ्रोटिक सिंड्रोम में क्या खाना चाहिए


नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी क्या है

क्या नेफ्रोटिक सिंड्रोम पूरी तरह ठीक हो सकता है ?

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम एक किडनी की बीमारी है। जिसमें पेशाब में प्रोटीन का बाहर निकल जाता है, और ब्लड में प्रोटीन की मात्रा में कमी होती है, जिससे चेहरा और आंखों के चारों ओर में सूजन इस बीमारी का मुख्य लक्षण हैं।


एक तरह से हम यह कह सकते हैं कि जो पानी हम पीते हैं वह धीरे-धीरे हमारे शरीर में इकट्ठा होना स्टार्ट हो जाता है और हमें सूजन आने लग जाती है पूरी बॉडी में


मुख्यतः यह बीमारी बच्चों में होती है बट यह बड़े में भी हो सकती है यानी किसी भी उम्र में हो सकती है


इस बीमारी को होने में थोड़ा टाइम लगता है यह 1 दिन में नहीं होती इसी प्रकार इसको ठीक होने में भी टाइम लगता है यह 1 दिन में ठीक नहीं होती आपको लंबे समय तक मेडिसन लेनी पड़ती है फिर भी कई बार सूजन आ जाती है मेडिसिन लेते लेते इसलिए मरीज और उसके परिवार वाले सदस्य को एक चिंता रहती हमेशा

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी में किडनी पर क्या कुप्रभाव पडता है?

मैं सरल भाषा में बताना चाहूंगा किडनी हमारे शरीर में खून को छानने का काम करती है और हमारे ब्लड के अंदर अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकाल देती है उसे हम पेशाब कहते हैं


नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी में जो किडनी के छन्नी जैसे छेद बड़े हो जाने के कारण ब्लड के अंदर उपस्थित प्रोटीन छन्कर बाहर निकल जाती है पेशाब के साथ में

जितनी ज्यादा प्रोटीन का लॉस होगा ब्लड से उतना ही सूजन अधिक आएगी शरीर में

आपको मैं बताना चाहूंगा यह प्रोटीन हमारे ब्लड के अंदर उपस्थित होती है इसका नाम एल्बुमिन प्रोटीन है यह मुख्यतः क्या करती है हमारे शरीर में पानी को मेंटेन रखने का काम करती है यानी जो शरीर में पानी जितना आवश्यक होता है उतना ही रखती है एक्स्ट्रा पानी को यह ब्लड में रखकर यूरिन के द्वारा बाहर निकाल देती है बट यह प्रोटीन ही यूरिन के द्वारा बाहर निकल जाती है तो यह पानी को एस्ट्रा सेल से नहीं ला पाती ब्लड के अंदर और धीरे-धीरे पेशाब आना ही कम हो जाता है इस बीमारी में जो पानी होता है वह हमारे शरीर में भरना स्टार्ट हो जाता है
और हमारे शरीर में सूजन आ जाती है

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी किस कारण से होता है?

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी होने का कोई स्पेशल कारण नहीं मिल पाया है। हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम होता है यह बीमारियों से लड़ता रहता है बट कभी-कभी हमारा ही इम्यून सिस्टम हमारे ही शरीर के ऑर्गन को यह मारना स्टार्ट कर देता है जैसे किडनी को यह डैमेज करना स्टार्ट कर देता है और किडनी में बड़े-बड़े छन्नी के छेद हो जाते हैं जिसकी वजह से प्रोटीन इस किडनी के द्वारा बाहर निकल जाती है पेशाब के माध्यम से

90 % रोगी बच्चे स्टेरॉयड उपचार से ही ठीक हो जाते हैं।

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी के मुख्य लक्षण/ संकेत  ( आंखों में सूजन आने का कारण )


यह रोग मुख्यतः बच्चों में दिखाई देता है।


मुख्य इस रोग में पहले बच्चे को बुखार या खांसी जुकाम होता है के बाद यह शरीर में सूजन आना स्टार्ट होती है इस बीमारी में


इस बीमारी में सबसे पहले आंखों की पुतलियों के आसपास सूजन आना स्टार्ट हो जाती हैं और मरीज समझता है कि यह आंख की कोई बीमारी की है इस कारण वह पहले आंखों के डॉक्टर के पास जाता है


जब बच्चा सो कर उठता है मॉर्निंग में तो यह सूजन आंखों के पास ज्यादा दिखाई देती है और धीरे-धीरे दिन के शाम होते होते यह कम होती जाती है


इस बीमारी के कारण बच्चे का पेट फूलना लगता है और हाथ पैर भी मोटे होने लगते हैं यानी सूजन आने लगती है और बच्चे का वजन बढ़ जाता है

जब बच्चा पेशाब करता है तो पेशाब करते समय पेशाब में झाग बनते हैं

सामान्यतः नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम एक से 10 साल की उम्र के बच्चों में ज्यादा पाया जाता है।

इस बीमारी में कभी भी लाल पेशाब नहीं आता यानी पैसा में कभी भी खून नहीं आता
नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी में कौन से गंभीर खतरे उत्पन्न हो सकते हैं?

नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी में धीरे-धीरे किडनी डैमेज होना स्टार्ट कर देती है जिससे ब्लड भी बनना कम हो जाता है और धीरे-धीरे एनीमिया की शिकायत हो जाती है यानी खून की कमी

ब्लड के अंदर धीरे धीरे कोलेस्ट्रॉल का लेवल बढ़ना स्टार्ट हो जाता है जिससे ह्रदय की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है


यदि शरीर में बहुत ज्यादा सूजन आएगी तो इसका मतलब बहुत ज्यादा पानी भर रहा है और बच्चे के फेफड़ों में भी पानी भरना स्टार्ट हो जाता है जिसे बच्चे की सांस फूलना लग जाती है


नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम बीमारी की जांच :
  1. पेशाब में प्रोटीन की उपस्थिति का लेवल चेक करना
  2. ब्लड में प्रोटीन का लेवल चेक करना
  3. ब्लड में कोलेस्ट्रोल के स्तर का बढ़ा होना


1. पेशाब की जाँच :  (प्रोटीन टेस्ट )

नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी के लिए सबसे पहले हम पेशाब की जांच करवाते हैं

पेशाब की जांच हम दो तरह से कर सकते हैं

1st-पेशाब की जांच की पहली विधि यह है यूरिन रीएजेंट स्ट्रीप टेस्ट,इस टेस्ट को हम 2 मिनट में टेस्ट कर सकते हैं कि की पेशाब में प्रोटीन है या नहीं है और कितनी प्रोटीन उपस्थित है यह उस स्ट्रीप का कलर चेंज को देखकर हम यह बता सकते हैं कि कितना प्रोटीन लॉस हो रहा है

यूरिन रीएजेंट स्ट्रीप टेस्ट विधि

इसके लिए मेडिकल से आप एक यूरिन स्ट्रिप टेस्ट की एक डब्बी मिलती है उसमें से एक आपको स्ट्रिप बाहर निकालना है और फिर उसे तभी को बंद कर देना है

उस स्ट्रिप में एक साइड दो कलर के निशान हैं एक कलर नीला है जो ग्लूकोज के लिए है दूसरा कलर पीला है पीला कलर पेशाब में प्रोटीन को चेक करने के लिए आता है फिर आपको कलर वाली साइड को 2 सेकंड के लिए पेशाब में आपको डूब आना है

फिर आपको उस स्ट्रीप को धरातल पर रख देना है 1 मिनट के लिए उसके बाद आपको उस डब्बे पर कलर दे रखा है और देखना है कि वह उस डब्बे के कलर से किस लेवल पर मैच कर रहा है जिस कलर से मैच कर रहा है उस पर निशान दे रखा है

यदि पेशाब में प्रोटीन नहीं होगी तो वह स्ट्रीप का येलो कलर का निशान येलो कलर ही रहेगा और डब्बी के येलो कलर से ही मैच करेगा

यदि पेशाब में प्रोटीन उपस्थित होगी तो यो पीला कलर का निशान है पीला हरा हो जाएगा यदि बहुत ज्यादा अधिक प्रोटीन होगी तो और यह पीला कलर डार्क होता जाएगा

दूसरी विधि यह है इसके लिए आपको हॉस्पिटल में जाकर लैबोरेट्री में जाकर चेक करवाना होता है इसके लिए आपको 24 घंटे का पेशाब इकट्ठा करना होता है एक डब्बे में डब्बे में इकट्ठे करने से पहले आपको लेबोरेटरी से एक दवाई लेनी पड़ती है जो डब्बे में आपको डालनी होती है उसके बाद में 24 घंटे का यानी 1 दिन और एक रात का पेशाब इकट्ठा किया जाता है उसके बाद में उस पेशाब को लेबोत्री में जमा कराना पड़ता है उसके बाद वह लेबोरेटरी में चेक करके बताते हैं कि आपके बच्चे के पेशाब में 24 घंटे में कितनी प्रोटीन बाहर निकलती है


1. खून की जाँच :

सामान्य जाँच:

खून की जांच में सबसे पहले यह देखते हैं कि प्रोटीन की मात्रा कितनी है ब्लड के अंदर

यदि नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी होगी तो इस ब्लड की जांच में आपको एल्बम इन प्रोटीन तो कम होगा और लिपिड ज्यादा होगा

CBC कराई जाती है जिससे इंफेक्शन को चेक करने के लिए2. रेडियोलॉजिकल जाँच :
किडनी की बायोप्सी

नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम के सही कारण जानने के लिए किडनी की बायोप्सी सबसे महत्वपूर्ण परीक्षण है। और किडनी बायोप्सी में किडनी से एक छोटा सा नमूना लिया जाता है और माइक्रोस्कोप द्वारा प्रयोगशाला मैं जाँच की जाती है।


नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम का उपचार : ( नेफ्रोटिक सिंड्रोम ट्रीटमेंट इन हिंदी )

इस बीमारी के उपचार के लिए आपको लंबे समय तक ट्रीटमेंट की आवश्यकता होती है इसमें मुख्यता किडनी को डैमेज होने से बचाया जाता है इसके लिए एक प्रेडनिसोलोन टेबलेट यूज़ करते हैं जिससे क्या होता है कि हमारे शरीर की जो इम्यूनिटी है वह हमारी ही किडनी को डैमेज कर रही है तो इम्यूनिटी को कम कर देंगे तो वह डैमेज भी कम करेगी

हम इस बीमारी में यूनिटी को बहुत ज्यादा कम नहीं कर सकते क्योंकि अगर इम्यूनिटी हमारे शरीर में कम हो जाएगी तो और नई नई बीमारी हो सकती है क्योंकि यह इम्यूनिटी हमारे शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता रखती है और छोटे-मोटे बीमारियों को यह नहीं होने देती


1.क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए ( नेफ्रोटिक सिंड्रोम में क्या खाना चाहिए )

यदि सूजन बहुत ज्यादा आ रही है तो उसे कम पानी पाने की सलाह दी जाती है और साथ में नमक बंद कर दिया जाता है

खाने में अधिक प्रोटीन खाने की सलाह दी जाती है जैसे अंडे

सूजन न होने वाले मरीज पानी सामान्य तौर पर नॉर्मल पी सकता है पर नमक कम खाने की सलाह दी जाती है और अधिक से अधिक प्रोटीन खाने की सलाह दी जाती है


2. संक्रमण का उपचार एवं रोकथाम :( पेशाब में प्रोटीन जाने का होम्योपैथिक इलाज )

संक्रमण होने वाले बच्चों का मुख्य तो ध्यान रखा जाता है कि उनके खांसी जुकाम बुखार ना हो यानी कोई इंफेक्शन ना हो क्योंकि अगर कोई इंफेक्शन होगा तो हमारा इम्यून सिस्टम भी एक्टिव होगा और वह हमारी किडनी को ज्यादा डैमेज करेगा तो बीमारी के पहनने यह नेफ्रोटिक सिंड्रोम बीमारी भी बढ़ जाती है और ऐसे टाइम पर हम स्टोरेज भी स्टार्ट नहीं कर सकते क्योंकि इन्फेक्शन का पहले ट्रीटमेंट करना आवश्यक है उसके बाद में स्टोरेज देते हैं

सहायक दवा चिकित्सा ( पेशाब में प्रोटीन जाने का आयुर्वेदिक इलाज )
  1. सूजन पर नियंत्रण पाने के लिए और पेशाब ज्यादा मात्रा में होने के लिए लसिक्स दवा दी जाती है।
  2. इंफेक्शन के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवायें दी जाती हैं।

निगरानी और जाँच करना

यह बीमारी लंबे समय तक चलती है और एक बार ठीक होने के बाद यह कभी भी हो सकती है इसके लिए बच्चों में विशेष तौर पर यूरिनरी एजेंट स्ट्रिप टेस्ट रोज करना चाहिए सुबह उठते ही जिससे आपको पता चले कि अगर यूरिन के अंदर प्रोटीन आ रही है तो तुरंत आप डॉक्टर से जाकर सलाह ले सकते हैं और अपना ट्रीटमेंट स्टार्ट करवा सकते हैं क्योंकि स्टेरॉयड लंबे समय तक नहीं चला सकते आपको मैंने बताया ही है कि उससे इम्यूनिटी कमजोर हो जाएगी और इन्फेक्शन हो सकते हैं

कभी भी अपनी मर्जी से आप यह दवाइयां कभी भी नहीं दे क्योंकि इसके विपरीत प्रभाव बहुत ज्यादा है शरीर पर इसलिए डॉक्टर की सलाह से ही हमेशा यह दवाई देनी चाहिए
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Nursing Officer

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